Madhu varma

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लेखनी कविता - गज़ल

गज़ल


1
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है
बस्तियाँ छोड़ के जाने को कहा जाता है

पत्तियाँ रोज़ गिरा जाती है ज़हरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है

2
नए सफर का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धूप चरागों को शाम कह देंगे

किसी से हाथ भी छुपकर मिलाइए वर्ना
इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे

3
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ मेँ रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे

शाख़ों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

4
आंख में पानी रखो, होठों पे चिंगारी रखो 
जिंदा रहना है तो, तरकीबें बहुत सारी रखो 

ले तो आये शायरी बाज़ार में राहत मियां 
क्या ज़रूरी है के लहजे को भी बाज़ारी रखो 

5
कल तक दर दर फिरने वाले, घर के अन्दर बैठे हैं 
और बेचारे घर के मालिक, दरवाज़े पर बैठे हैं 

खुल जा सिम सिम याद है किसको, कौन कहे और कौन सुने 
गूंगे बाहर चीख रहे हैं, बहरे अन्दर बैठे हैं 

6
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में 
उजाले पाँव पटकने लगे हैं पानी में 

अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे,
बहुत सवाब कमाए गए जवानी में 

7
हर एक लफ्ज़ का अंदाज़ बदल रखा है 
आज से हमने तेरा नाम, ग़ज़ल रखा है 

मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया 
मेरे कमरे में भी एक ताज महल रखा है "

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